समस्तीपुर : लोकसभा चुनाव का दौड़ जारी है। लोग अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार अभियान में जोर शोर से जुटे हैं। इस सीट पर लड़ाई बेहद दिलचस्प है क्योंकि, यहां नीतीश सरकार के दो मंत्री के संतानें चुनाव लड़ रही है। एक स्थानीय है तो दूसरे भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की इस धरती पर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश में जुटे हैं। दोनों में जारी इस जंग में आखिर किसकी जीत होगी ऐ तो आने वाला चुनाव परिणाम बताएगा। लेकिन, इस सब के बीच जनता के जहन में एक ही सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या भारतरत्न कर्पूरी ठाकुर की यह धरती उजियारपुर की तरह ही नेता विहीन होने की कगार पर आ पहुंची है! आज उजियारपुर के हालत ऐसे हैं कि वहां मुख्य धारा की दोनों पार्टियों से लोग दूसरे जगहों से आते हैं। चुनाव आते ही यहां स्थानीय – स्थानीय का मुद्दा जोर पकड़ लेता है। लेकिन, चुनाव के बढ़ते तापमान के साथ ही धीरे-धीरे ठंडा हो जाता है। लोग बड़े-बड़े चेहरों को देखकर सब कुछ भुला देते हैं। बीते दिनों की घटना को देखें तो इससे परेशान होकर एक राजनीतिक दल के पूर्व जिलाध्यक्ष भी निर्दलीय मैदान में ताल ठोक रहे हैं। वे कहते हैं कि इस बार बाहरी को यहां से भगाना है। वहीं इस चुनाव में समस्तीपुर सीट को देखें तो वहां भी कुछ इसी तरह का माहौल नजर आ रहा है। यहां एक गंगा पार के नेता अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की होड़ में जुटे हैं। वहीं एक अन्य राष्ट्रीय पार्टी से एक मिथिलांचल के पासी समाज के नेता जी भी मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। हालांकि, मिथिलांचल का यह पासी समाज का बेटा उतना असरदार नजर नहीं आता। जितने गंगा पार वाले नेता जी दिखाई पड़ रहे हैं। वहीं एक नेता जी अपने इस जमीन पर अपने पिता के राजनीतिक कैरियर को दाव पर लगा पूरी शिद्दत से समस्तीपुर बचाव की तैयारी में जुटे है। लेकिन, देखना होगा कि आखिर अपने मकसद में कामयाब हो पते है या नहीं।
सीट पर बाहरी की दावेदारी क्यों ?
चुनाव में दोनों मुख्य धारा की पार्टी के अलग-अलग करीब आधा दर्जन बाहरी लोग इस सीट पर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे थे। लेकिन, पार्टी ने वैसे लोगों पर भरोसा नहीं जताया। अंत में वह सब यहां से अपनी दावेदारी छोड़ निकल पड़े। समस्तीपुर सीट लोगों को उजियारपुर की तरह ही आसान लगती है। सरैसा की इस मिट्टी में मिथिलांचल की मिठास इतनी अधिक है कि लोग यहां के लोगों को बेहद सीधा व सरल समझते हैं। इसी कारण वह जानते हैं कि यहां के लोग केवल थोड़ा प्यार व अपनापन दिखाने पर साथ आ जाते हैं। थोड़ा भौकाल व थोड़ी शिष्टता से यहां आसान जीत मिल जाती है। लोगों ने पहले भी यहां से दूसरे जगहों के प्रत्याशियों को उचित सम्मान दिया है। इसी कारण अपनी जगह से विस्थापित लोगों की यह पहली पसंद हैं।
नेता विहीन होने से नुकसान किसका :
आज समस्तीपुर अपने लोगों से पूछ रहा है कि कहा गई मेरी वह गौरव जिसने इस मिट्टी से भारत रत्न दिए? कहां गई मेरी वह महक जो देश के पहले संसद में महकती थी? इस नेता विहीन समाज से नुकसान किसका है। आज संसद में मेरी दो-दो कुर्सी है लेकिन, मेरा कोई लाल वहां कई वर्षो से नहीं पहुंचा। 2009 में मेरी एक बेटी व मेरा एक बेटा दोनों मेरे सम्मान को चार चांद लगा रहे थे। लेकिन, तब से आज तक मैं अपनों की एक झलक पाने की उम्मीद में आश लगाए बैठी हूं।